कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को सबसे जरूरी बताया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग की अपील की थी। अब जिस तरह से यूपी-बिहार की ओर जाने वाले मजदूर एक साथ सड़कों पर निकल रहे हैं, मालगाड़ी या कंटेनर में सैंकड़ों मजदूर यात्रा करते हुए पकड़े जा रहे हैं, यह स्थिति कोरोना के साथ हो रही लड़ाई को कमजोर बना सकती है।
डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग तोड़ने के अच्छे नतीजे नहीं मिलेंगे। मजदूरों का सामूहिक पलायन खतरे की घंटी बजा रहा है। अगले दो सप्ताह बहुत अहम हैं, सोशल डिस्टेंसिंग का सुरक्षा चक्र टूटने से कोरोना का संक्रमण कितना बढ़ता है, यह देखने वाली बात होगी।
देश का सबसे बड़ा क्वारंटीन सेंटर छावला स्थित आईटीबीपी परिसर में बनाया गया है। वहां के डॉक्टर राजकुमार बताते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग को अभी हमारे देश में उतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। ये बहुत गलत है। लॉकडाउन का मतलब लोगों को अपने घरों से बाहर नहीं निकलना है।
लोगों के बीच कम से कम छह फुट की दूरी रहे। कोरोना संक्रमण को आगे फैलने से रोकने के लिए यह सबसे अधिक कारगर तरीका माना जाता है। दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर जिस तरह से हजारों लोग एक साथ एकत्रित हो गए, वह बहुत खतरनाक स्थिति का संकेत है।
अगर ऐसी भीड़ में चार पांच व्यक्तियों को भी कोरोना का संक्रमण है तो वह आगे चलकर चेन बनाते हुए हजारों लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है। ये लोग सोशल डिस्टेंसिंग का सुरक्षा चक्र तो बहुत पहले ही तोड़ चुके हैं और अब इनके पास कोरोना से बचाव का कोई दूसरा उपाय भी नहीं है।
न सैनिटाइजर हैं और न ही मास्क। कोई अपने मुंह पर रूमाल बांधे है तो महिला चुन्नी से मुंह ढके हुए है। अब यह कोई नहीं जानता कि ये सब सैनिटाइज हैं या नहीं।
आने वाले दो सप्ताह अब बहुत अहम होंगे। कई बार कोरोना का लक्षण दस बारह दिन बाद सामने आता है। दस अप्रैल के बाद का समय बहुत चिंतित करने वाला है। चूंकि जहां से ये लोग चले हैं, वहां भी इनकी जांच नहीं हुई और जहां पर ये पहुंचेंगे, वहां भी अभी तक ऐसी पुख्ता जांच किए जाने की व्यवस्था होती नहीं दिख रही।
मेदांता अस्पताल की डॉक्टर नीलम मोहन के अनुसार, लॉकडाउन में अगर ऐसी भीड़ हो रही है तो एक आदमी सैंकड़ों लोगों में संक्रमण फैला सकता है। कोरोना की शिफ्टिंग को लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तय है कि यह बहुत तेजी से आगे बढ़ता है।
प्लास्टिक पर भी कोरोना के तीन चार घंटे तक जीवित रहने की बात सामने आई है। भीड़ है, वहां थैले भी हैं, दूसरा सामान भी है और सोशल डिस्टेंसिंग तो बिल्कुल नहीं है, ऐसे में कैसे कहा जा सकता है कि वे सब लोग कोरोना से सुरक्षित हैं। इन्हीं गलतियों से कोरोना के थर्ड स्टेज में जाने का खतरा पैदा होता है।
मैक्स अस्पताल, दिल्ली के डॉक्टर दिनेश खुल्लर के मुताबिक, लॉकडाउन पीरियड के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग तो सबसे ज्यादा जरूरी है। लोगों को दिक्कत तो होती है, लेकिन कोरोना से बचाव के लिए उनका घर में बैठे रहना ही सबसे सुरक्षित उपाय है। लोग यह समझें कि वायरस उनके आसपास है।
अब ये कोई नहीं कह सकता कि किस व्यक्ति में कोरोना के लक्षण हैं। यदि वह व्यक्ति सोशल डिस्टेंसिंग तोड़ता है तो फिर इसके मल्टीप्लायर संक्रमण का अंदाजा लगा सकते हैं। लोगों को लॉकडाउन के दौरान हिम्मत, भरोसा और धैर्य रखना होगा। मजदूरों की भीड़ है, अब इनमें से किसी की जांच नहीं हुई है। ये लोग जहां भी जाएं, वहां का प्रशासन इन्हें क्वारंटीन की सुविधा दे तो कुछ हद तक कोरोना संक्रमण से बचा जा सकता है।
देश का सबसे बड़ा क्वारंटीन सेंटर छावला स्थित आईटीबीपी परिसर में बनाया गया है। वहां के डॉक्टर राजकुमार बताते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग को अभी हमारे देश में उतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। ये बहुत गलत है। लॉकडाउन का मतलब लोगों को अपने घरों से बाहर नहीं निकलना है।
लोगों के बीच कम से कम छह फुट की दूरी रहे। कोरोना संक्रमण को आगे फैलने से रोकने के लिए यह सबसे अधिक कारगर तरीका माना जाता है। दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर जिस तरह से हजारों लोग एक साथ एकत्रित हो गए, वह बहुत खतरनाक स्थिति का संकेत है।
अगर ऐसी भीड़ में चार पांच व्यक्तियों को भी कोरोना का संक्रमण है तो वह आगे चलकर चेन बनाते हुए हजारों लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है। ये लोग सोशल डिस्टेंसिंग का सुरक्षा चक्र तो बहुत पहले ही तोड़ चुके हैं और अब इनके पास कोरोना से बचाव का कोई दूसरा उपाय भी नहीं है।
न सैनिटाइजर हैं और न ही मास्क। कोई अपने मुंह पर रूमाल बांधे है तो महिला चुन्नी से मुंह ढके हुए है। अब यह कोई नहीं जानता कि ये सब सैनिटाइज हैं या नहीं।
आने वाले दो सप्ताह अब बहुत अहम होंगे। कई बार कोरोना का लक्षण दस बारह दिन बाद सामने आता है। दस अप्रैल के बाद का समय बहुत चिंतित करने वाला है। चूंकि जहां से ये लोग चले हैं, वहां भी इनकी जांच नहीं हुई और जहां पर ये पहुंचेंगे, वहां भी अभी तक ऐसी पुख्ता जांच किए जाने की व्यवस्था होती नहीं दिख रही।
मेदांता अस्पताल की डॉक्टर नीलम मोहन के अनुसार, लॉकडाउन में अगर ऐसी भीड़ हो रही है तो एक आदमी सैंकड़ों लोगों में संक्रमण फैला सकता है। कोरोना की शिफ्टिंग को लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तय है कि यह बहुत तेजी से आगे बढ़ता है।
प्लास्टिक पर भी कोरोना के तीन चार घंटे तक जीवित रहने की बात सामने आई है। भीड़ है, वहां थैले भी हैं, दूसरा सामान भी है और सोशल डिस्टेंसिंग तो बिल्कुल नहीं है, ऐसे में कैसे कहा जा सकता है कि वे सब लोग कोरोना से सुरक्षित हैं। इन्हीं गलतियों से कोरोना के थर्ड स्टेज में जाने का खतरा पैदा होता है।
मैक्स अस्पताल, दिल्ली के डॉक्टर दिनेश खुल्लर के मुताबिक, लॉकडाउन पीरियड के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग तो सबसे ज्यादा जरूरी है। लोगों को दिक्कत तो होती है, लेकिन कोरोना से बचाव के लिए उनका घर में बैठे रहना ही सबसे सुरक्षित उपाय है। लोग यह समझें कि वायरस उनके आसपास है।
अब ये कोई नहीं कह सकता कि किस व्यक्ति में कोरोना के लक्षण हैं। यदि वह व्यक्ति सोशल डिस्टेंसिंग तोड़ता है तो फिर इसके मल्टीप्लायर संक्रमण का अंदाजा लगा सकते हैं। लोगों को लॉकडाउन के दौरान हिम्मत, भरोसा और धैर्य रखना होगा। मजदूरों की भीड़ है, अब इनमें से किसी की जांच नहीं हुई है। ये लोग जहां भी जाएं, वहां का प्रशासन इन्हें क्वारंटीन की सुविधा दे तो कुछ हद तक कोरोना संक्रमण से बचा जा सकता है।